रामचरितमानस (तुलसी रामायण) के सात कांड || 7 Kand of Ramcharitmans (Tulsidas_Ramayan)

अवधी भाषा में रामायण | रामचरितमानस की रचना करते हुए संत तुलसीदास जी


रामचरितमानस (रामायण) : हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर 

श्री रामचरितमानस (तुलसीकृत रामायण) हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। इस महाकाव्य की रचना संत तुलसीदास द्वारा १६वीं शताब्दी में 'अवधी भाषा' में की गई थी। हिंदी भाषियों के बीच यह रामायण (Ramayan)  के रूप में ही प्रसिद्ध है।

कहते हैं तुलसीदास जी महर्षि वाल्मीकि ही थे जिन्होंने कलयुग में तुलसीदास के रूप में जन्म लेकर रामायण को जनकल्याणकारी और सर्वसुलभ रूप में सामान्य जनमानस के समक्ष उद्घाटित किया और उसे नाम दिया- 'रामचरितमानस'।

रामचरितमानस की हर चौपाई में सीता-राम हैं क्योंकि इसकी हर चौपाई में स, त, र, म अवश्य मिलेगा। इसी कारण इसकी एक-एक चौपाई को मंत्र की तरह प्रयोग किया जाता है।

रामचरित मानस का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का आदर्श और अनुकरणीय जीवन चरित चित्रित करने वाले इस महाग्रंथ को यदि "हिन्दू जनमानस की आदर्श आचार संहिता" जाय तो अनुचित न होगा। रामचरितमानस विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय पचास (५०) काव्य ग्रंथों में से एक है।

माना जाता है कि तुलसीदास जी ने लोककल्याण के लिए लोक-प्रचलित भाषा में रामायण की  रचना भगवान शंकर के आदेश से की।

श्री रामचरितमानस में राम को त्रेता युग में अवतरित भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि वाल्मीकि रामायण में राम को लौकिक पुरुष के रूप में दिखाया गया है। वाल्मीकीय रामायण और तुलसीकृत रामायण में यही प्रमुख अंतर है।

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में राम को एक असाधारण किन्तु लौकिक पुरुष के रूप में दर्शाया है जबकि तुलसीदास ने राम को अवतारी रूप में चित्रित किया है। फिर भी उनका मर्यादा पुरूषोत्तम स्वरूप जनसाधारण के लिए सहज अनुकरणीय है।


रामचरितमानस एक महाकाव्य है, जो दोहा-चौपाई शैली में लिखा गया है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य छंद जैसे सोरठा, सवैया आदि का भी प्रयोग किया गया है। प्रायः चार चौपाइयों के बाद एक दोहा आता है लेकिन यह कहीं-कहीं कम-ज्यादा भी है।

वैसे मेरा अनुभव है कि इस मामले में अयोध्याकाण्ड सबसे सटीक है। इस काण्ड में चौपाइयों और दोहे के बीच का अंतर प्रायः समान है।

पूरा रामचरितमानस सात (७) काण्ड (अध्याय) में विभक्त है।दूसरे शब्दों में कहें तो रामचरितमानस में कुल सात अध्याय हैं जिन्हें काण्ड कहा गया है। प्रत्येक काण्ड का नाम उसमें वर्णित प्रमुख घटना/कालखण्ड/स्थानादि के आधार पर रखा गया है। जैसे श्रीराम के बाल्यकाल का वर्णन होने के कारण बालकाण्ड।


श्री रामचरितमानस (Ramayan)  के सात कांड या सात सोपान (अध्याय)

रामचरितमानस में कुल सात कांड हैं। प्रत्येक कांड का आरंभ संस्कृत के श्लोकों से हुआ है। उसके बाद दोहा या सोरठा और फिर चौपाई। सामान्यतः चार चौपाई के बाद एक दोहा आता है। बीच-बीच में अन्य छंद भी अवसरानुकूल आते रहते हैं। इसी प्रबन्ध में सम्पूर्ण रामचरितमानस रचित है।

रामचरितमानस के विस्तार (आकार) का अनुमान उसके दोहों की संख्या से किया जाता है। हम आगे प्रत्येक कांड के साथ उसमें आए दोहों की संख्या भी लिख रहे हैं जो आपके लिए अधिक उपयोगी होगा।

रामचरितमानस के सातों कांड का अति संक्षिप्त उल्लेख आगे किया गया है-

बालकाण्ड - रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल ३६१ दोहे हैं।

बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।

अयोध्याकाण्ड - अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्याकाण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में ३२६ दोहे हैं।

अरण्यकाण्ड - राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें ४६ दोहे हैं।

किष्किंधाकाण्ड - राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें ३० दोहे हैं।

किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।

सुन्दरकाण्ड - सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर  लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।

अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल ६० दोहे हैं।

लंकाकाण्ड - सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल १२१ दोहे हैं।

वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।

उत्तरकाण्ड - जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में १३० दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।

उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।


बंधुओं! रामचरितमानस का धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से जितना महत्व है; जीवन शैली, सामाजिक समरसता और साहित्य की दृष्टि से भी उससे कम नहीं है। अवधी भाषा में रचित यह कालजयी ग्रंथ हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है जो हमें पीढ़ियों से लाभान्वित करता आ रहा है और समय के साथ और भी प्रासंगिक होता जा रहा है।

आपको यह प्रस्तुति कैसी लगी कृपया कमेंट करके बताएँ।


!!जय श्री राम!!








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