संदेश

नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ग़ज़ल - मेरा प्यार भी अजीब था | Ghazal

चित्र
गजल - मेरा प्यार भी अजीब था ये जो इश्क है, वो जूनून है, वो जो न मिला वो नसीब था। वो पास हो के भी दूर था, या दूर हो के करीब था ।। मेरे हौसले का मुरीद बन या दे मुझे तू अब सजा। तू ही दर्श था, तू ही ख्वाब था, तू ही तो मेरा हबीब था।। उस शहर की है ये दास्ताँ, जहाँ बस हमी थे दरमियाँ। न थी दुआ, न थी मेहर, न तो दोस्त था न रकीब था।। करता रहा दिल को फ़ना, जिसे लोग कहते थे गुनाह। एक अजनबी पे था आशना, मेरा प्यार भी अजीब था।। 'अज्ञात'

तुम मुझमें प्रिय फिर परिचय क्या : एक प्रेम कविता || Love Poem

चित्र
प्रेम, रहस्यवाद और उस अज्ञात प्रियतम से एकाकार हो जाने के भावों को अभिव्यंजित करती हुई महादेवी वर्मा की एक सुंदर कविता- love poem in hindi तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या? तारक में छवि, प्राणों में स्मृति, पलकों में नीरव पद की गति, लघु उर में पुलकों की संसृति,            भर लाई हूँ तेरी चंचल!            और करूँ जग में संचय क्या? तेरा मुख सहास अरुणोदय, परछाई रजनी विषादमय, वह जागृति वह नींद स्वप्नमय,            खेल खेल थक थक सोने दे!            मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या? तेरा अधर विचुंबित प्याला तेरी स्मित मिश्रित हाला, तेरा ही मानस मधुशाला,            फिर पूछूँ क्या मेरे साकी!            देते हो मधुमय विषमय क्या? रोम रोम में नंदन पुलकित, साँस साँस में जीवन शत शत, स्वप्न स्वप्न में विश्व अपरिचित,            मुझमें नित बनते मिटते प्रिय!            स्वर्ग मुझे क्या निष्क्रिय लय क्या? हारूँ तो खोऊँ अपनापन पाऊँ प्रियतम में निर्वासन, जीत बनूँ तेरा ही बंधन,            भर लाऊँ सीपी में सागर!            प्रिय मेरी अब ह

वायु प्रदूषण और पीएम 2.5 | PM2.5

चित्र
वायु प्रदूषण और पीएम 2.5   ऐसे शब्द हैं जो इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में हैं । आइये हम वायु प्रदूषण के ही सन्दर्भ में पीएम 2.5 के बारे में जानते हैं । वायुमण्डल हमारे पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है। वायुमण्डल से ही हम अपने जीवन के लिए अनिवार्य प्राणवायु ग्रहण करते हैं जिसे वैज्ञानिक शब्दावली में ऑक्सीजन (O 2 ) के नाम से जाना जाता है। यह प्राणवायु हमारे लिए कितनी आवश्यक है इस बात का अनुमान ऐसे कर सकते हैं कि- "बिना भोजन के हम २० दिनों तक जीवित रह सकते हैं। बिना जल के ७ दिनों तक जीवित रहा जा सकता है। किन्तु प्राणवायु के अभाव में मनुष्य ७ मिनट भी जीवित नहीं रह सकता।" यही प्राणदायिनी वायु आज इतनी विषैली होती जा रही है कि हमारे प्राणों के लिए ही घातक बन गयी है। इन दिनों ये ख़बरें लगातार सुर्ख़ियों में हैं कि भारत के अमुक राज्य में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। चारों तरफ स्मॉग फैला हुआ है। पूरा परिक्षेत्र गैस चैम्बर में तब्दील हो गया है। स्कूल, कॉलेज तक बंद करने की नौबत आ गयी है। इस दौरान वायु में पीएम2.5 की मात्रा मान

जिसने पाप न किया हो

चित्र
बात बहुत पुरानी है। किसी राज्य में एक राजा राज करता था। वह बहुत ही न्यायप्रिय था। उसके राज्य में अपराधियों के लिए कड़े दण्ड का प्रावधान था। चोरों को फाँसी पर लटका दिया जाता था। एक बार एक चोर को चोरी करते हुए पकड़ा गया। अपराध सिद्ध होने पर राजा ने चोर को नियमानुसार फाँसी की सजा सुनाई। चोर सजा भुगतने के लिए सहर्ष तैयार हो गया लेकिन उससे पहले उसने राजा से कहा हुजूर मैं एक गुप्त विद्या जानता हूँ जो मैं मारने से पहले आपको सिखाकर जाना चाहता हूँ। ताकि यह विद्या मेरे मरने साथ खत्म न हो जाय। महाराज मैं सोने की खेती करना जानता हूँ। राजा ने चोर को अपने पास बुलवाया और पूछा- सोने की खेती कैसे की जाती है? बताओ! चोर बोला- महाराज! सवा किलो सोने के, मटर के बराबर दाने सुनार से बनवाकर मँगा दीजिए। मैं राजमहल की चहारदीवारी में ही क्यारी बनाकर उन्हें बोउँगा। जब तक सोने के दाने आएँगे, तब तक मैं क्यारियाँ तैयार कर लूँगा। राजा ने चोर की बात मान ली और सोने के बीज तैयार करने का आदेश दे दिया। इधर चोर ने फावड़ा लिया, फावड़े से मिट्टी खोदी। फिर खुरपी और हाथों की सहायता से मिट्टी तैयार की। तब तक सोने के दा

रात आधी खींच कर मेरी हथेली - हरिवंशराय बच्चन की कविता

चित्र
"रात आधी खींचकर मेरी हथेली" यह सुंदर कविता "कोशिश करने वालों की हार नहीं होती" का सुंदर संदेश देने वाले प्रख्यात कवि और लेखक 'हरिवंशराय बच्चन' ने लिखी  जिनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी लोकप्रिय कृति 'मधुशाला' की पंक्तियाँ हर साहित्य प्रेमी की जुबान पर होती हैं। सूफी दर्शन से ओतप्रोत 'मधुशाला' एक ऐसी अनुपम कृति है जिसकी प्रसिद्धि के आयाम को २०वीं सदी के बाद की कोई दूसरी रचना अब तक नहीं प्राप्त कर पायी है। मधुशाला के अलावा भी हरिवंश राय बच्चन की अन्य रचनाएँ जैसे मधुकलश, निशा निमंत्रण, धार के इधर उधर, मिलन यामिनी, आकुल अंतर, प्रणय पत्रिका इत्यादि सब एक से बढ़कर एक हैं और सभी रचनाएँ भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टिकोण से श्रेष्ठ हैं। लेकिन मित्र, आज हम यहाँ बात कर रहे हैं हरिवंशराय बच्चन जी की एक खूबसूरत कविता की जो शायद हिंदी साहित्य में लिखी गई सर्वश्रेष्ट प्रेम कविताओं व प्रेम गीतों में स्थान पाने की योग्यता रखती है। प्रेम और वेदना की जिस भाव-भूमि पर उतर कर कवि ने इस कविता को रचा है वह किसी भी सहृदय के के मन के तारों

हिंदी भाषा के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानंद का एक स्मरणीय प्रसंग

चित्र
उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधयत् !! स्वामी विवेकानंद विश्वविख्यात धर्माचार्य और विद्वान थे। उन्हें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी सहित अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं का ज्ञान था। वास्तव में जिस संत ने अपने संबोधन से अमेरिका वासियों को मंत्रमुग्ध कर दिया हो उसके अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के विषय में भला किसे संदेह हो सकता है। किन्तु उन्हें अपनी संस्कृति के साथ-साथ अपनी मातृभाषा हिंदी से भी गहरा प्रेम था। वे अपनी संस्कृति से जुड़ी समस्त वस्तुओं में मातृभाव रखते थे और उनका सम्मान करते थे। हिंदी भाषा के प्रति भी उनके मन में यही भाव था। वे हिंदी को 'माँ' के समान मानते थे।  उनसे जुड़ा यह प्रसंग बहुत रोचक और प्रेरणादायी है। स्वामी विवेकानंद एक बार विदेश गए। वहाँ उनके अनेक प्रशंसक उनसे मिलने के लिए आये हुए। थे उन लोगों ने स्वामी जी की तरफ हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया और अपनी सभ्यता के अनुसार अंग्रेजी में 'हेलो' (Hello)   कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा- 'नमस्ते'। उन लोगों ने सोचा शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है।  तब उनमें से एक ने ह

मेरा नया बचपन / mera naya bachpan

चित्र
'मेरा नया बचपन' सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है। प्रायः हम सभी ने बचपन में "मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी" ये पंक्तियाँ पढ़ीं होंगी। ये पंक्तियाँ इसी मेरा नया बचपन नामक कविता का अंश थीं। आइए आज पढ़ते हैं पूरी कविता- बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया, ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥ चिंता रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद। कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद॥ ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी? बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥ किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया। किलकारी किल्लोल मचा कर सूना घर आबाद किया॥ रोना और मचल जाना भी क्या आनन्द दिलाते थे। बड़े-बड़े मोती से आँसू जयमाला पहनाते थे॥ मैं रोई माँ काम छोड़कर, आई मुझको उठा लिया। झाड़-पोंछ कर चूम-चूम गीले गालों को सुखा दिया॥ दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे। धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे॥ वह सुख का साम्राज्य छोड़ कर मैं मतवाली बड़ी हुई। ल