जिसने पाप न किया हो
बात बहुत पुरानी है। किसी राज्य में एक राजा राज करता था। वह बहुत ही न्यायप्रिय था। उसके राज्य में अपराधियों के लिए कड़े दण्ड का प्रावधान था। चोरों को फाँसी पर लटका दिया जाता था।
एक बार एक चोर को चोरी करते हुए पकड़ा गया। अपराध सिद्ध होने पर राजा ने चोर को नियमानुसार फाँसी की सजा सुनाई। चोर सजा भुगतने के लिए सहर्ष तैयार हो गया लेकिन उससे पहले उसने राजा से कहा हुजूर मैं एक गुप्त विद्या जानता हूँ जो मैं मारने से पहले आपको सिखाकर जाना चाहता हूँ। ताकि यह विद्या मेरे मरने साथ खत्म न हो जाय। महाराज मैं सोने की खेती करना जानता हूँ।
राजा ने चोर को अपने पास बुलवाया और पूछा- सोने की खेती कैसे की जाती है? बताओ!
चोर बोला- महाराज! सवा किलो सोने के, मटर के बराबर दाने सुनार से बनवाकर मँगा दीजिए। मैं राजमहल की चहारदीवारी में ही क्यारी बनाकर उन्हें बोउँगा। जब तक सोने के दाने आएँगे, तब तक मैं क्यारियाँ तैयार कर लूँगा। राजा ने चोर की बात मान ली और सोने के बीज तैयार करने का आदेश दे दिया। इधर चोर ने फावड़ा लिया, फावड़े से मिट्टी खोदी। फिर खुरपी और हाथों की सहायता से मिट्टी तैयार की। तब तक सोने के दाने भी आ गए।
चोर ने राजा से कहा- मुझे अपने उस गुरु की बात याद आ गई जिनसे मैंने यह विद्या सीखी थी। मैं चोरी करते हुए रँगे हाथों पकड़ा गया हूँ इसलिए मैं अपने हाथों से यह सोने के दाने नहीं बो सकता। सोने की खेती सिर्फ वही कर सकता है जिसने अपने जीवन में कभी भी चोरी या कोई गलत काम अर्थात जिसने कोई पाप न किया हो। अन्यथा ये जमीन में पड़े रह जाएँगे, उगेंगे नहीं। बहुत अच्छा होगा महाराज यदि आप ही अपने शुभ हाथों से इन्हें बो दें।
राजा शर्मिंदा होते हुए बोला- मैंने तो एक षड्यंत्र के तहत पहले राजा को मरवा कर राजगद्दी हथियाई थी, इसलिए पापी तो मैं भी हुआ। मैं ये दाने नहीं बोउँगा। इसके बाद राजा ने एक-एक कर सभी मंत्रियों को बुलाया और सोने की खेती की शर्त बताई। लेकिन एक भी मंत्री ऐसा नहीं निकला जिसने कभी कोई चोरी, षड्यंत्र या पाप न किया हो। राजा चोर से बोला- यहाँ सभी चोर हैं इसलिए सोने की खेती नहीं हो सकती।
राजा की बात सुनकर चोर ने कहा- महाराज, जिस राज्य का राजा पापी हो, सारे मंत्री चोर हों वहाँ प्रजा को मामूली चोरी के लिए फाँसी पर चढ़ा देना कहाँ का न्याय है?
चोर की बुद्धिमत्ता और वाक्पटुता देखकर राजा ने उसकी सजा माफ कर दी और उसे अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया।
सच है मित्रों, दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने से पहले हम अपने अंदर झाँकना चाहिए। हम सब के अंदर कुछ न कुछ बुराइयाँ हैं। आवश्यकता है अपनी उन बुराइयों को पहचानने की और उन्हें दूर करने की।
ये पंक्तियाँ प्रासंगिक हैं-
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोज आपना, मुझसे बुरा न कोय।।"
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